राज्यहरियाणा

पूर्व विधायक रेलू राम और परिवार के 8 लोगों की हत्या की कहानी, जब बेटी-दामाद ने आधी रात को फार्म हाउस में बिछा दीं लाशें

हिसार.

23 अगस्त 2001. अगस्त का महीना और बरसात का सीजन. रात के 12 बजे रहे थे. हालांकि, अब तक पूर्व विधायक रेलू राम और उनकी पत्नी सोए नहीं थे. अपने फार्म हाउस में दोनों पति पत्नी के बीच किसी बात पर बहसबाजी औऱ चर्चा हो रही थी. किसी को अंदेशा नहीं था कि यह उनकी जिदंगी की आखिरी रात होगी. फिर उसी रात को घर में रेलू राम की बेटी की एंट्री हुई और फिर जो कुछ हुआ, वो डराने वाला था. एक के बाद एक, कुल आठ लोगों का लाशें घर में बिछी हुई थी. फर्श पर मानों खून की नदियां बह रही थी. जैसे ही आठ लोगों की हत्या की खबर फैली तो पूरा इलाका हैरान रह गया.

दरअसल, यह कहानी हिसार के बरवाला के पूर्व विधायक रेलू राम और उनके परिवार के कुल आठ लोगों की हत्या से जुड़ी है. इस मामले में अब हाईकोर्ट ने पूर्व विधायक रेलू राम पूनिया के दामाद संजीव कुमार और बेटी सोनिया और की रिहाई को लेकर याचिका को स्वीकार कर लिया है और इस वजह से यह हत्याकांड फिर से चर्चा में आ गया है. रेलू राम की बेटी सोनिया ने संजीव के साथ लव मैरिज की थी. हालांकि, परिवार इस शादी के खिलाफ था. सोनिया जूडो खिलाड़ी थी और संजीव के साथ उसकी मुलाकात भी ट्रेनिंग के दौरान हुई थी.

क्यों की गई थी हिसार के बरवाला के पूर्व विधायक रेलू राम समेत 8 लोगों की हत्या

पूर्व विधायक रेलू राम पुनिय़ा की बेटी सोनिया अपने पिता की संपति में हिस्सा चाहती थी. लेकिन वह उन्हें प्रॉपर्टी देने के इच्छुक नहीं थे. 23 अगस्त को सोनिया का जन्मदिन था और वह पति के साथ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से हिसार जा रही थी. इस दौरान सोनिया को लितानी गांव में पिता के फार्महाउस पहुंचते पहुंचते करीब रात के 12 बज गए थे. जब पर घर में पहंची तो देखा कि उसके पिता और मां में कहासुनी हो रही है और प्रॉपर्टी को लेकर ही वह झगड़ रहे थे. सोनिया ने देखा कि उनके पिता अपनी संपति में उन्हें हिस्सा देने के बिलकुल खिलाफ थे. बस फिर क्या था, सोनिया ने अपने पति के साथ मिलकर पिता और पूरे परिवार को मारने की प्लानिंग बनाई. सोनिया और संजीव ने अपनी पिता रेलू राम पूनिया (50), मां कृष्णा देवी (41), सुनील (23), बहू शकुंतला (20), पोता लोकेश (4) और दो पोतियों शिवानी (2) और प्रियंका (14) के अलावा, 45 दिन की प्रीति की रॉड से बेरहमी से हत्या कर दी. सोनिया और संजीव ने घर में आठ लांशें बिछा दी. हालांकि, वह कार लेकर वहां से फरार गई और सोचा कि अब खुद की जिदंगी को भी खत्म कर देगी. लेकिन ऐसा नहीं कर पाई. सोनिया फिर दोबारा घर लौटी और जहर की आधी शीशी पीकर जान देने के कोशिश की. लेकिन, वह अपनी कोशिश में कामयाब नहीं हुई. बाद में पुलिस ने दोनों पति पत्नी को गिरफ्तार कर लिया था.

तीन साल तक कोर्ट में चला था केस और हुई थी फांसी की सजा

फिर तीन साल केस चला और 2004 में हिसार की अदालत ने संजीव और सोनिया को फांसी की सजा सुनाई. सजा के खिलाफ दोनों सुप्रीम कोर्ट पहुंचे लेकिन राहत नहीं मिली और 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा करो बरकरार रखा. हिसार पुलिस की जांच में पता चला था कि इस नरसंहार की मुख्य वजह जमीन-जायदाद का बंटावारा ही था. इस पूरे हत्याकांड ने पूरे प्रदेश को हिला दिया था. क्योंकि अब प्रदेश में ऐसा कोई मामला सामने नहीं आया, जिसमें एकसाथ आठ लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया हो. सोनिया अपने पति के साथ जूडो एकादमी खोलना चाहती थी औऱ इसलिए पिता से थोड़ी बहुत संपति मांग रही थी.

 सोनिया और संजीव ने पहले गोली मारने का प्लान था

सोनिया और संजीव ने पहले प्लान बनाया था कि पूरे परिवार को गोलियां मारेंगे. प्लान के अनुसार, सोनिया के जन्मदिन की पार्टी के बहाने पटाखे के शोर में गोलियां चलेंगे. हालांकि, फिर उन्हें लगा कि पटाखों के शोर से पिता और मां की नींद टूट सकती है. इसलिए लोहे की रॉड से हत्या की गई.

कौन थे हिसार के बरवाला के पूर्व विधायक रेलू राम पुनिया

हिसार से पूर्व विधायक रेलू राम की कहानी बेहर रोचक है. उन्हें कामयाबी के रास्ते में जाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी थी. रेलू राम का बचपन काफी गरीबी में गुजरा था और वह अपने परिवार का गुजारा करने के लिए लोगों की भैंसें चराते थे. हालांकि, बाद में वह नौकरी की तराल में दिल्ली चले गए. यहां पर उन्हें ट्रकों की धुलाई और साफ सफाई का काम मिला. यहां पर एक सेठ के पास नौकरी के दौरान रेलू राम की जिदंगी को नई दिशा मिली और उन्हें कच्चे तेल का कारोबार शुरू कर दिया. यहीं से रेलू राम की जिदंगी पलट गई और उन्होंने बड़े पैमानी पर पैसा बना. ऐस पैसे से उन्होंने बड़े पैमाने पर जमीन फरीदाबाद और दिल्ली में कोठी के अलावा, कई दुकानें खरीदीं. गौर रहे कि रेलू राम ने दो शादियां की थी.

रेलू राम ने आजाद लड़ा था चुनाव

जानकारी के अनुसार, साल 1996 में हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने जा रहे थे. इस बीच रेलू राम ने चुनाव लड़ने का मन बनाया. किसी भी पार्टी से टिकट नहीं मिला तो रेलू राम पूनिया ने बरवाला से आजाद प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया. उन्हें चुनाव में रेलगाड़ी का चुनाव चिह्न मिला. बताते हैं कि उस चुनाव में ‘रेलू राम की रेल चलेगी, बिन पानी बिन तेल चलेगी.’ नारा खूब चला. इस चुनाव में रेलू राम की जीत हुई और फिर उन्होंने हिसार में 2 एकड़ जमीन में कोठी बनवाई. कहते हैं कि इस कोठी के दूसरे फ्लोर तक कारें जाती थीं.

पहले दी थी फांसी फिर हाईकोर्ट ने बदला फैसला

हिसार कोर्ट ने इस मामले में दोनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी, लेकिन 2025 में हाईकोर्ट ने फांसी को उम्रकैद में बदल दिया. हालांकि, मामला फिर सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट ने लोअर कोर्ट के फैसले को सही माना और फांसी की सजा को बरकार रखा. 23 अगस्त 2007 को दोनों की समीक्षा याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था. सेशन जज ने 26 नवंबर 2007 को फांसी की तारीख तय की. लेकिन फिर सोनिया और संजीव ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका लगाई. हालांकि, कई साल तक दया याचिका पेंडिंग रही और फिर 3 अप्रैल 2013 को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने दया याचिका को खारिज कर दिया. हालांकि, इस दया याचिका में देरी पर जनवरी 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने दोनों की फांसी की सजा उम्रकैद में बदल दिया था.

 

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