आम जनता के स्वास्थ्य पर राष्ट्रीय अभियान की घोषणा के साथ रायपुर जन स्वास्थ्य सम्मेलन संपन्न

रायपुर
पूरे भारत से 19 से ज़्यादा राज्यों के लगभग 350 प्रमुख स्वास्थ्य नेतृत्वकर्ता, एक्टिविस्ट्स, जनांदोलनों और समुदाय के प्रतिनिधियों की भागीदारी के साथ रायपुर, छत्तीसगढ़ में दो दिवसीय राष्ट्रीय स्वास्थ्य सम्मेलन संपन्न हुआ। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य दिनोंदिन गंभीर होती जा रही कठिन स्वास्थ्य चुनौतियों का सामना करने के साथ-साथ आम जनता के व्यापक हितों को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य व्यवस्था में नीतिगत बदलावों की मांग और जमीनी स्तर पर जन स्वास्थ्य आंदोलन को रणनीतिक रूप से मजबूत करना था।
सम्मेलन की शुरुआत में स्वास्थ्य क्षेत्र में सरकार की मौजूदा प्राथमिकताओं और निजीकरण के बढ़ते खतरे की तरफ ध्यान दिलाते हुए जन स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए ठोस पहलकदमी पर जोर दिया गया। हाल ही में नीति आयोग के एक सर्कुलर को लेकर खास चिंता जताई गई, जिसमें जिला अस्पतालों के लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) मॉडल को बढ़ावा दिया गया है। प्रतिभागियों ने चिंता जताई कि इससे देश की सबसे कमजोर और जरूरतमंद आबादी के लिए स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं तक पहुँच मुश्किल हो जाएगी।
मुख्य वक्ता कम्युनिटी मेडिसिन एक्सपर्ट डॉ. रितु प्रिया ने नज़रिए में बड़े बदलाव की मांग की। उन्होंने कहा, "बहुत लंबे समय से, स्वास्थ्य के बारे में हमारी समझ सिर्फ़ डॉक्टरों और अस्पतालों तक ही सीमित रही है।" "हमें समुदाय के तरीकों, पारंपरिक ज्ञान और हमारी आधी आबादी की सेवा करने वाले इनफॉर्मल डॉक्टरों की ताकत को वैलिडेट और इंटीग्रेट करना होगा। एक सच्चा स्वस्थ समाज ज़मीन से बनता है, ऊपर से नीचे थोपा नहीं जाता।" उन्होंने यह भी कहा कि दशकों से, और खासकर 1990 के दशक से, नवउदारवादी नीतियों ने सुनियोजित तरीके से पब्लिक हेल्थ सिस्टम (जन स्वास्थ्य प्रणाली) को कमज़ोर किया है। इसका नतीजा यह हुआ है कि मौजूदा सरकार चिकित्सा शिक्षा और सेवा, उपकरणों एवं दवाओं के निजीकरण का व्यापक एजेंडा बना रही है, जिससे हेल्थकेयर असल में अधिकार के बजाय एक बाजार बन गया है।
ग्रीन नोबेल अवार्डी श्री प्रफुल्ल सामंत्रे ने कहा, "हमारी सरकार का मौजूदा रास्ता सिर्फ़ जनविरोधी नीतियों का निर्माण नहीं है; यह उस संवैधानिक ताने-बाने पर हमला है जो बराबरी और समावेशी मूल्यों का वादा करता है। वे सुनियोजित तरीके से निजी लाभों के लिए जन स्वास्थ्य का व्यापार कर रहे हैं, और आयुष्मान कार्ड जैसी पॉलिसी मरीज़ों से ज़्यादा कॉर्पोरेट घरानों को फ़ायदा पहुंचाने में काम आ रही है।"
सम्मेलन के दौरान उठाए गए मुख्य मुद्दों में स्वास्थ्य के लिए सरकारी आवंटन जीडीपी के 1.5% से भी कम है (जो तय न्यूनतम 2.5% से बहुत कम है), विफल स्वास्थ्य बीमा (इंश्योरेंस) मॉडल, पर्यावरणीय और जलवायु परिवर्तन के कारण स्वास्थ्य पर बढ़ते कुप्रभाव, स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण, वंचित समुदायों की स्वास्थ्य सेवाओं की भारी अनदेखी, महिला हिंसा और उनकी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं आदि प्रमुख थे।
प्रमुख घोषणाएं और निर्णय: –
1. व्यावसायिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर एक पखवाड़ा अप्रैल, 2026 में मनाया जाएगा।
2. व्यावसायिक और पर्यावरणीय स्वास्थ्य पर एक राष्ट्रीय जन स्वास्थ्य सम्मेलन जयपुर में आयोजित किया जाएगा।
3. स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण के खिलाफ और सार्वजनिक स्वास्थ्य की मजबूती के लिए राष्ट्रीय अभियान।
4. जमीनी स्तर के कार्यकर्ताओं के लिए स्वास्थ्य के विभिन्न मुद्दों पर आधारित एक सात दिवसीय कोर्स की शुरूआत मार्च, 2026 तक करना।
5. देश के 100 जिलों में मजबूत स्वास्थ्य कार्यकर्ता तैयार करना
6. महिला हिंसा और महिला स्वास्थ्य तथा वंचित समुदायों के स्वास्थ्य के मुद्दों पर पृथक समूह का निर्माण।
दो दिवसीय सम्मेलन के अंत में सभी प्रतिनिधियों के सामूहिक प्रयासों से तैयार जन स्वास्थ्य घोषणा पत्र जारी किया गया जिसमें जन स्वास्थ्य के मुद्दों का समर्थन करते हुए जमीनी और राष्ट्रीय स्तर पर सामूहिक प्रयास करने और सक्रिय गोलबंदी का संकल्प लिया गया। इस सम्मेलन में जन स्वास्थ्य अभियान इंडिया की राष्ट्रीय कार्यकारिणी का गठन कर राष्ट्रीय और राज्य कन्वेनर भी बनाए गए और एक राष्ट्रीय सलाहकार समूह का भी गठन किया गया।
सम्मेलन के दौरान स्वास्थ्य व्यवस्थाओं एवं स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण और दवाओं के मुद्दों पर आधारित पुस्तकों का प्रकाशन भी किया गया। सम्मेलन के विभिन्न सत्रों में विषय विशेषज्ञों अमितावा गृह, ऋतु प्रिया, डॉ. सुनीलम, प्रफुल्ल सामंतरा, कैलाश मीना, राजकुमार सिन्हा एवं समुदाय के प्रतिनिधियों के साथ ही पीड़ित और प्रभावित दिनेश रायसिंग, चुन्नी जी आदि ने विभिन्न सत्रों में अपने-अपने अनुभव साझा किए।
अभियान के बारे में :
जन स्वास्थ्य अभियान इंडिया (JSAI) जन स्वास्थ्य विशेषज्ञों, जमीनी कार्यकर्ताओं, जन आंदोलनों और नागरिकों का एक राष्ट्रीय समन्वय है जो संविधान द्वारा गारंटीकृत सभी भारतीयों के लिए समान और सुलभ स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है। यह अभियान एक मजबूत, सरकारी वित्त पोषित (पब्लिक फंडेड) देखभाल व्यवस्था की वकालत करता है और ज़रूरी सेवाओं के निजीकरण का विरोध करता है।











