पंजाबराज्य

भविष्य की खेती: आधुनिक तकनीक के साथ कैसे बदलेगी खेती और क्या होगी शिक्षा की निर्णायक भूमिका

लुधियाना 
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा हाल ही में सभी राज्य और केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालयों को जारी एक परिपत्र इस बात को रेखांकित करता है कि आने वाले समय में प्राकृतिक खेती के अध्ययन और उसके प्रचार-प्रसार पर जोर देना क्यों आवश्यक है। कुलपतियों को भेजे गए पत्र में आईसीएआर ने प्राकृतिक खेती से जुड़े स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों तथा शोध कार्यक्रमों को शुरू करने का आग्रह किया है। पत्र में कहा गया है कि प्राकृतिक खेती और सतत कृषि पद्धतियां रासायनिक प्रदूषण, किसानों के कर्ज, जल संरक्षण जैसी गंभीर समस्याओं से निपटने में सहायक हो सकती हैं। साथ ही, यह जैव विविधता बढ़ाने और स्वस्थ भोजन के उत्पादन में भी मददगार साबित होंगी।

पीएयू की पहल
लुधियाना स्थित पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) में वर्ष 2017 में जैविक एवं प्राकृतिक खेती का स्कूल स्थापित किया गया था। इसका उद्देश्य जैविक और प्राकृतिक कृषि से संबंधित वैज्ञानिक ज्ञान के विकास और प्रसार के लिए बहुविषयक शोध, प्रशिक्षण और विस्तार गतिविधियों को अंजाम देना है। इस स्कूल के पास एक हेक्टेयर का एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल फार्म है, जिसमें फसल उत्पादन, डेयरी, बागवानी, मत्स्य पालन और कृषि-वनिकी शामिल हैं। इसके अलावा, यहां वर्मी कम्पोस्टिंग और वर्मीकल्चर यूनिट भी स्थापित है।

बढ़ती रुचि
कोविड महामारी के बाद जैविक और प्राकृतिक खेती के पाठ्यक्रमों में दाखिले को लेकर पूछताछ में कई गुना वृद्धि हुई है। स्कूल ऑफ ऑर्गेनिक एंड नेचुरल फार्मिंग, पीएयू के निदेशक डॉ. सोहन सिंह वालिया कहते हैं, “हमें रोजाना दो-तीन पूछताछ प्राकृतिक और जैविक खेती को लेकर मिलती हैं। कोविड के बाद लोग भोजन उत्पादन के तरीकों को लेकर कहीं अधिक जागरूक हो गए हैं। अब प्राकृतिक खेती को केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता के रूप में देखा जा रहा है, क्योंकि यह स्वास्थ्य की रक्षा करती है, मिट्टी को पुनर्जीवित करती है और अनिश्चित समय में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है।”

खेती की पढ़ाई पर जोर
पीएयू के छात्रों ने पंजाब सरकार से मांग की है कि कक्षा 9 से 12 तक सरकारी स्कूलों में कृषि को अनिवार्य विषय बनाया जाए। अंग्रेज सिंह, एग्रीकल्चर स्टूडेंट्स एसोसिएशन ऑफ पंजाब (ASAP) के संस्थापक सदस्य, कहते हैं, “हम चाहते हैं कि स्कूलों में कृषि पढ़ाई जाए, क्योंकि यह शिक्षा को वास्तविक कृषि विकास से जोड़ती है और कम उम्र से ही जीवन कौशल तथा सामाजिक जिम्मेदारी सिखाती है। बच्चों को प्रारंभिक स्तर पर खेती के बारे में शिक्षित करने से वे प्राकृतिक खेती का महत्व समझेंगे और रसायनों के बिना प्रकृति के साथ तालमेल में अपना भोजन उगाना सीखेंगे। इससे सभी के लिए स्वास्थ्य और संतुलन सुनिश्चित होगा।”
 
पाठ्यक्रमों में शामिल प्राकृतिक खेती
पीएयू में बीएससी (कृषि) पाठ्यक्रम में जैविक खेती शामिल है। इसके अलावा, ‘प्राकृतिक खेती के सिद्धांत’ विषय बीएससी (कृषि) और बीएससी (बागवानी) के छात्रों को पढ़ाया जाता है। इसी तरह, कृषि विज्ञान विभाग द्वारा स्नातकोत्तर छात्रों के लिए भी जैविक और प्राकृतिक खेती के पाठ्यक्रम संचालित किए जाते हैं। साथ ही, घरों में किचन गार्डन विकसित करने के इच्छुक लोगों के लिए समय-समय पर अल्पकालिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।

बदलता फोकस
पीएयू के कुलपति डॉ. सतबीर सिंह गोसल कहते हैं, “हमने हरित क्रांति का नेतृत्व किया और अब समय आ गया है कि ध्यान प्राकृतिक और जैविक खेती की ओर मोड़ा जाए। छोटे कदमों से भी इस क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। हालांकि प्राकृतिक खेती अपनाने से शुरुआती दौर में पैदावार प्रभावित हो सकती है, लेकिन किचन गार्डन जैसे छोटे स्तर से शुरुआत करना एक बेहतर रास्ता हो सकता है।”

प्राकृतिक खेती बनाम जैविक खेती
    प्राकृतिक खेती में खेती के तरीकों में प्रकृति के नियमों को अपनाया जाता है। इसमें बीज समेत सभी संसाधन खेत से ही लिए जाते हैं।
    जैविक खेती मिट्टी और पर्यावरण के स्वास्थ्य के सिद्धांत पर आधारित एक पर्यावरण-अनुकूल प्रणाली है।
    प्राकृतिक खेती में किसी भी बाहरी इनपुट, यहां तक कि जैविक खाद का भी उपयोग नहीं किया जाता और यह पूरी तरह प्राकृतिक चक्रों पर निर्भर होती है।
    जैविक खेती में रासायनिक पदार्थों पर रोक होती है, लेकिन कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट और गोबर खाद जैसे अनुमोदित जैविक इनपुट्स की अनुमति होती है।
    प्राकृतिक खेती में मिट्टी को कम से कम छेड़ने, बिना जुताई और निराई-गुड़ाई पर जोर दिया जाता है, जबकि जैविक खेती में ये प्रक्रियाएं अपनाई जा सकती हैं।

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