
चंडीगढ़
पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेता प्रतिपक्ष भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा है कि विधानसभा के हालिया सत्र के दौरान भाजपा सरकार का रवैया पूरी तरह से जन-विरोधी और जनहित के मुद्दों से भागने वाला रहा। पूरे सत्र में सरकार ने विपक्ष के सवालों, प्रस्तावों और जनसरोकारों से जुड़े मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया। कांग्रेस ने चंडीगढ़ के स्टेटस, अरावली में खनन, किसानों की समस्याएं, बेरोजगार युवाओं, भर्ती घोटालों, एमएसपी, धान घोटाला, मनरेगा, भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, खिलाड़ियों की मौतें, एसवाईएल जल विवाद और भाजपा नेताओं की हेट स्पीच जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा के लिए विभिन्न प्रस्ताव दिए थे। लेकिन विधानसभा के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि कांग्रेस का एक भी स्थगन प्रस्ताव, कार्य स्थगन प्रस्ताव या अल्पकालिक चर्चा का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया। भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि वोट चोरी जैसे गंभीर खुलासे के बाद बीजेपी के भीतर छटपटाहट साफ नजर आ रही है। इसीलिए विधानसभा में जानबूझकर इस मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए बीजेपी चुनाव सुधार पर चर्चा का प्रस्ताव लेकर आई। जबकि यह विधानसभा के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं आता। इसीलिए कांग्रेस ने सदन से वॉकआउट किया। कांग्रेस वोट चोरी पर चर्चा के लिए अगले सत्र में विशेष प्रस्ताव लेकर आएगी।
हुड्डा अपने आवास पर पत्रकार वार्ता को संबोधित कर रहे थे। इस मौके पर उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार के दौरान हमने खेलों और खिलाड़ियों पर विशेष ध्यान दिया। हमारी स्पोर्ट्स पॉलिसी की वजह से हरियाणा का नाम पूरे देश में चमका था, लेकिन मौजूदा सरकार ने उसे बर्बाद कर दिया। कांग्रेस ने 300 से अधिक स्टेडियम बनाए थे, लेकिन अब उनकी दुर्दशा हो रही है। प्रदेश के दो होनहार युवा खिलाड़ी हार्दिक और अमन की असमय मौत हुई, जो कि सरकारी लापरवाही का नतीजा थी। हम इस पर चर्चा के लिए प्रस्ताव लाए, लेकिन सरकार जवाब देना तक उचित नहीं समझा।
अरावली के लिए कांग्रेस ने अल्पकालिक चर्चा का प्रस्ताव दिया, लेकिन इससे भी सरकार भाग गई। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में साफ है कि अरावली का विनाश हरियाणा पर सबसे ज्यादा प्रभाव डालेगा। इससे प्रदूषण फैलेगा और हरियाणा के 'फेफड़ों' की तरह काम करने वाली यह पहाड़ियां नष्ट हो जाएंगी। इसपर हरियाणा सरकार का स्टैंड क्या है? सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने इसे क्यों नहीं बचाया और अब रिव्यू पिटीशन क्यों नहीं दाखिल कर रही? सरकार ने इसका भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया।
इसी तरह, कांग्रेस के ध्यानाकर्षण प्रस्ताव जलभराव, बढ़ते प्रदूषण, धान घोटाला और मनरेगा पर थे। मनरेगा की स्थिति इतनी खराब है कि 8 लाख लोग पंजीकृत हैं, लेकिन कुल 100 दिनों का रोजगार सिर्फ 2,100 लोगों को ही मिला। पिछले 5 सालों का रिकॉर्ड देखें तो मनरेगा नियम के तहत मजदूरों को जो मुआवजा देना होता है, लेकिन एक भी व्यक्ति को मुआवजा नहीं दिया गया।
नशे से होने वाली मौतें हरियाणा में पंजाब से भी ज्यादा हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है। शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर हमारे सभी साथियों ने पूरी तैयारी की थी, लेकिन चर्चा ही नहीं हुई। भाजपा मंत्रियों और विधायकों की हेट स्पीच पर भी कोई जवाब नहीं आया।
कांग्रेस ने सरकार को चंडीगढ़ का स्टेटस स्पष्ट करने को कहा। क्योंकि रोज अखबारों में पढ़ने को मिलता है कि चंडीगढ़ का स्टेटस बदल रहा है। कांग्रेस ने मांग करी कि स्पष्ट करो – चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी है या नहीं? पिछले स्पीकर ने कहा था कि हमने फैसला कर लिया है, अलग जमीन लेकर विधानसभा बनाई जाएगी। लेकिन अब खबर आई है कि गृह मंत्रालय ने इससे इंकार कर दिया है। अगर चंडीगढ़ हरियाणा की राजधानी है, तो हमारी जमीन लेने से कौन रोक सकता है?
हुड्डा ने कहा किएसवाईएल के मामले में भी हरियाणा सरकार का स्टैंड स्पष्ट होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का आदेश 2002 में आया था, जो फाइनल हो चुका है। पंजाब ने एग्रीमेंट टर्मिनेट किया, तो 2004 में हमने (जब मैं सांसद था) राष्ट्रपति रेफरेंस करवाया। 2016 में फैसला आया। उसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने सर्वदलीय बैठक बुलाई, जिसमें मैं भी था। बैठक में फैसला हुआ कि राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलेंगे। मुख्यमंत्री ने पीएम से मिलवाने जिम्मेवारी ली थी, लेकिन आज तक प्रधानमंत्री से मुलाकात नहीं हुई।
सरकार ने सदन में वंदे मातरम पर चर्चा की। हमने पूछा कि इसका मकसद क्या है? वंदे मातरम राष्ट्रीय गीत है, जिसे संविधान सभा ने 1950 में अपनाया। क्या आप इसे बदल सकते हैं? इसी तरह, इलेक्टोरल रिफॉर्म्स का मुद्दा उठाया, जो हरियाणा विधानसभा के डोमेन में ही नहीं है। संसद, विधानसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव इलेक्शन कमीशन की संवैधानिक बॉडी के अधीन हैं, यहां इसपर चर्चा हो ही नहीं सकती। यह सब बीजेपी अपनी विफलताएं छिपाने के लिए कर रही है।
क्योंकि वो हरियाणा के हितों की रक्षा नहीं कर पा रही और अब कह रही हैं कि एसआईआर पर चर्चा को तैयार हैं। हमने कभी एसआईआर का विरोध नहीं किया, लेकिन हम रिफॉर्म चाहते हैं। जैसे कि चुनाव बैलेट पेपर पर हों या वीवीपैट की पर्ची वोटर को दी जाए, ताकि पता चले वोट कहां गई। ईवीएम से वीवीपैट तक रिफॉर्म होने चाहिए।
हुड्डा ने प्रदेश की वित्तीय स्थिति पर टिप्पणी की। उन्होंने बताया कि नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक फिस्कल हेल्थ इंडेक्स में हरियाणा 18 राज्यों में 14वें नंबर पर है। स्टेट वाइज डेब्ट इंडेक्स में 18 में से 15वें स्थान पर। ब्याज भुगतान राजस्व प्राप्तियों का 23% है। कैपिटल एक्सपेंडिचर 2018-19 में 16.4% से घटकर 2022-23 में 9.7% रह गया।









