क्या हनुमान मंदिर जाकर उसी रास्ते से वापस आना चाहिए? जानें इसका जीवन पर असर और कारण

हनुमान जी को संकटमोचन और शक्ति के प्रतीक के रूप में जाना जाता है. उनके भक्त अक्सर उनके मंदिर जाते समय विशेष नियमों का पालन करते हैं. इनमें से एक नियम यह है कि जिस रास्ते से हनुमान मंदिर जाते हैं, उसी रास्ते से लौटकर नहीं आना चाहिए. यह नियम केवल परंपरा तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें जीवन और ऊर्जा से जुड़े गहरे अर्थ छिपे हैं. मंदिर जाने और लौटने की इस क्रिया के पीछे धार्मिक, ज्योतिषीय और मानसिक दृष्टिकोण से समझने योग्य कारण हैं. हनुमान जी की पूजा में मान्यता है कि वे अपने भक्तों को संकट, अशुभ प्रभाव और दुर्भाग्य से सुरक्षित रखते हैं. विशेष रूप से शनि के दोषों, साढ़े साती या ढैया से जुड़े प्रभावों को कम करने में हनुमान जी का स्थान महत्वपूर्ण माना जाता है. जब कोई व्यक्ति हनुमान मंदिर जाता है, तो यह माना जाता है कि वह अपने साथ दुख, चिंता, बाधाएं और नकारात्मक ऊर्जा लेकर जाता है.
मंदिर में दर्शन और पूजा करने से यह नकारात्मक ऊर्जा मंदिर में ही रह जाती है और भक्त उसे छोड़कर वापस लौटता है. यदि भक्त वही रास्ता वापसी के लिए अपनाता है, तो वह नकारात्मकता और बाधाओं को फिर से अपने साथ घर ले आता है. इसलिए, अलग रास्ता अपनाना केवल परंपरा नहीं, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव और पुराने दुःखों को पीछे छोड़ने का प्रतीक है. इस विषय में अधिक जानकारी दे रहे हैं भोपाल निवासी ज्योतिषी एवं वास्तु सलाहकार पंडित हितेंद्र कुमार शर्मा.
अलग रास्ता अपनाने का अर्थ है नई शुरुआत करना. यह दर्शाता है कि भक्त ने हनुमान जी का आशीर्वाद प्राप्त कर लिया है और अब वह एक नए, सुरक्षित और शुभ मार्ग पर आगे बढ़ रहा है. पुराने संकट और दुर्भाग्य को वहीं छोड़कर घर लौटना जीवन में आगे बढ़ने और मानसिक शांति पाने का संकेत देता है. इस प्रकार, अलग रास्ता जीवन में सकारात्मक ऊर्जा बनाए रखने का एक साधन बन जाता है.
हनुमान जी को प्रसन्न करने से शनिदेव भी संतुष्ट होते हैं. शनि का प्रभाव जीवन में कई बार बाधा और असुविधा पैदा करता है. मंदिर से लौटते समय अलग मार्ग अपनाना इस अशुभ प्रभाव को कम करने का तरीका माना जाता है. यह क्रिया यह सुनिश्चित करती है कि भक्त अब शनि के दोषों से मुक्त होकर एक सुरक्षित और शुभ मार्ग पर चल रहा है.
इसके अलावा, अलग रास्ता अपनाना मानसिक दृष्टि से भी लाभकारी है. जब व्यक्ति जानबूझकर किसी नए मार्ग से घर लौटता है, तो यह उसकी सोच में सकारात्मक बदलाव लाता है. यह चेतना का संकेत है कि अब पुराने संकट और नकारात्मक अनुभव जीवन पर हावी नहीं होंगे. धार्मिक मान्यता और मानसिक शांति का यह मेल भक्त को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से मजबूत बनाता है.
हनुमान मंदिर जाने के इस नियम का पालन केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं है. यह जीवन और ऊर्जा के संतुलन को बनाए रखने का मार्ग भी है. भक्त का यह निर्णय कि वह अलग मार्ग से लौटेगा, उसे मानसिक और आध्यात्मिक सुरक्षा प्रदान करता है. यह परंपरा यह याद दिलाती है कि पूजा केवल धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि एक ऐसा अनुभव है जो व्यक्ति को मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक रूप से बदलता है.
इस नियम का पालन करने वाले भक्त अक्सर महसूस करते हैं कि जीवन में बाधाएं कम हो जाती हैं, मानसिक तनाव घटता है और एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है. यही कारण है कि अधिकांश भक्त मंदिर जाने और लौटने के समय अलग रास्ता अपनाते हैं. इस प्रकार, यह न केवल धार्मिक मान्यता का पालन है, बल्कि जीवन में सकारात्मकता और सुरक्षा बनाए रखने का एक सरल और प्रभावशाली तरीका भी है.











