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जज जस्टिस ने कहा- महिला एमए की छात्रा है और इसलिए वह अपने हरकत की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी

नई दिल्ली
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अभी हाल ही में पीजी की एक छात्रा से बलात्कार करने के आरोपी शख्स को जमानत देते हुए कहा था कि पीड़िता खुद ही उस घटना के लिए जिम्मेदार है, क्योंकि उसी ने मुसीबत को न्योता दिया था। इस मामले की सुनवाई करने वाले और आरोपी को बेल देने वाले जज जस्टिस संजय कुमार सिंह ने कहा कि पीड़िता ने शराब के नशे में धुत्त होकर आरोपी के घर जाने के लिए सहमति देकर खुद ही मुसीबत को बुलाया था।

पिछले महीने दिए अपने फैसले में जस्टिस सिंह ने कहा कि महिला एमए की छात्रा है और इसलिए वह अपने हरकत की नैतिकता और महत्व को समझने में सक्षम थी। इसलिए कहा जा सकता है कि उसने खुद मुसीबत को न्योता दिया था। गुरुवार को जब यह खबर आई, तो राजनेताओं समेत कई लोगों ने जस्टिस संजय कुमार सिंह के फैसले पर सवाल उठाने शुरू कर दिए। उनके इस फैसले की हर तरफ आलोचना हो रही है। दरअसल, यह फैसला न्यायिक दृष्टिकोण और लैंगिक संवेदनशीलता पर सवाल खड़े करती है।

कौन हैं जस्टिस संजय कुमार सिंह
इलाहाबाद हाई कोर्ट की वेबसाइट पर दिए गए विवरण के अनुसार, जस्टिस संजय कुमार सिंह का जन्म 21 जनवरी, 1969 को उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में हुआ था। उन्होंने 1988 में इविंग क्रिश्चियन कॉलेज, इलाहाबाद (इलाहाबाद विश्वविद्यालय) से विज्ञान में स्नातक की उपाधि हासिल की है। इसके बाद उन्होंने कानपुर के छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से संबद्ध दयानंद कॉलेज ऑफ लॉ, कानपुर से 1992 में कानून की डिग्री की। उन्होंने 9 मई, 1993 को उत्तर प्रदेश बार काउंसिल में अधिवक्ता के रूप में नामांकन कराया। उन्होंने इलाहाबाद हाई कोर्ट में लंबे समय तक वकालत की।

कब बने हाई कोर्ट में जज
जस्टिस सिंह ने अपने पिता स्वर्गीय शीतला प्रसाद सिंह के मार्गदर्शन में वकालत की बारीकियां सीखीं। उनके पिता इलाहाबाद हाई कोर्ट में आपराधिक मामलों के नामी वकील थे। वह सरकारी अधिवक्ता भी रह चुके थे। अपने करीब ढाई दशक के वकालत पेशे के दौरान सिंह ने सिविल, सर्विस, शिक्षा और विविध रिट मामलों में अच्छी लॉ प्रैक्टिस की। उन्हें 22 नवंबर, 2018 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया था। फिर दो साल बाद 20 नवंबर, 2020 को उन्हें वहीं यानी इलाहाबाद हाई कोर्ट में ही स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई।

हाई कोर्ट के फैसले पर पहले भी विवाद
यह पहला मामला नहीं है, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले पर विवाद हुआ है। इससे पहले पिछले महीने 26 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसमें कहा गया था कि महिला के स्तनों को पकड़ना और उसके पायजामे की डोरी खींचना बलात्कार का प्रयास नहीं माना जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह आदेश पूरी तरह से असंवेदनशीलता और अमानवीय दृष्टिकोण को दर्शाता है। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 17 मार्च को अपने फैसले में ये टिप्पणियां की थीं। उस समय भी जस्टिस मिश्रा की खूब आलोचना हुई थी।

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