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भारत-जर्मनी के बीच 70,000 करोड़ की डील तय, प्रोजेक्ट-75 से हिंद महासागर में बढ़ेगी ताकत

नई दिल्ली

थल और वायु के बाद भारत अब समुद्र में भी अपनी ताकत को बढ़ाने में जुट गया है। भारत ने प्रोजेक्ट-75 को मंजूरी दे दी है। प्रोजेक्ट- 75 इंडिया के तहत जर्मनी के साथ 70 हजार की डील को मंजूरी दी है। प्रोजेक्ट 75 इंडिया के तहत भारत जर्मनी के सहयोग से छह एडवांस सबमरीन को देश में विकसित करेगी। इस प्रोग्राम में प्राइवेट सेक्टर भी शामिल है, जिसमें नौसेना के सबमरीन प्रोडक्शन सेंटर के सहयोग से लार्सन एंड टुब्रो ) की प्रमुख भूमिका होने की उम्मीद है। भारत दो परमाणु सबमरीन्स पर भी काम कर रहा है। इस कॉन्ट्रैक्ट के अगले छह महीने के अंदर पूरा होने की उम्मीद है।

रक्षा अधिकारियों ने कहा कि इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य न सिर्फ अपनी सबमरीन्स के फ्लीट में विस्तार करना है। साथ ही कंवेंसनल सबमरीन के निर्माण में भारत की स्वदेशी क्षमता को मजबूत करना है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, छह महीने से ज़्यादा समय तक रुके रहने के बाद, केंद्र सरकार ने रक्षा मंत्रालय और मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) को प्रोजेक्ट 75 इंडिया (पी-75आई) के तहत छह एडवांस सबमरीनंस के निर्माण के लिए जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स (टीकेएमएस) के साथ औपचारिक बातचीत शुरू करने की मंज़ूरी दे दी है। डिफेंस से जुड़े अधिकारियों ने एएनआई को बताया कि इस महीने के अंत तक बातचीत शुरू होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अब डिफेंस मिनिस्ट्री और एमडीएल को इस प्रोजेक्ट के लिए बातचीत शुरू करने की मंज़ूरी दे दी है और इस महीने के अंत तक यह प्रोसेस शुरू होने की उम्मीद है।

प्रोजेक्ट 75आई का क्या है लक्ष्य?
रक्षा मंत्रालय ने जनवरी में सरकारी स्वामित्व वाली एमडीएल को इस कार्यक्रम के लिए अपने रणनीतिक साझेदार के रूप में चुना था। इसके तहत जर्मनी के सहयोग से भारत में सबमरीनंस का निर्माण किया जाएगा।

प्रोजेक्ट की विशेषताए
    एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) सिस्टम वाली छह कंवेंशनल सबमरीनंस।
    जर्मन AIP तकनीक सबमरीनंस को तीन हफ्ते तक पानी के अंदर रख सकती है।
    इसे भारत की स्वदेशी सबमरीन निर्माण क्षमता बढ़ाने और इंपोर्ट पर निर्भरता कम करने के लिए डिजाइन किया गया है।
    रक्षा मंत्रालय और भारतीय नौसेना अंतिम सरकारी मंज़ूरी से पहले छह महीने की बातचीत का लक्ष्य बना रहे हैं।

क्यों जरूरी है प्रोजेक्ट?
भारत के रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के टॉप अधिकारियों ने जर्मन कंपनी के साथ छह एडवांस सबमरीन को भारत में ही निर्माण करने का यह फैसला भारतीय सबमरीन प्रोग्राम और उसकी भविष्य की आवश्यकताओं की समीक्षा और एक उच्च स्तरीय बैठक करने के बाद लिया है। प्रस्तावित सबमरीन्स को एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन (AIP) सिस्टम्स से भी लैस किया जाएगा, जिससे यह सबमरीन तीन हफ्ते तक पानी के अंदर बिना किसी समस्या के रह सकेंगी। इस एडवांस फीचर से भारतीय नौसेना की ताकत में और ज्यादा इजाफा होगा।

न्यूक्लियर सबमरीन प्रोग्राम
P-75I के साथ-साथ, भारत दो परमाणु सबमरीन्स पर भी काम कर रहा है। इस प्रोग्राम में प्राइवेट सेक्टर भी शामिल है, जिसमें नौसेना के सबमरीन प्रोडक्शन सेंटर के सहयोग से लार्सन एंड टुब्रो ) की प्रमुख भूमिका होने की उम्मीद है। सरकार इस सेक्टर में उनके महत्व को समझते हुए, परमाणु और कंवेंशनल दोनों सबमरीन प्रोजेक्ट्स को तेजी से आगे बढ़ाने के विकल्प तलाश रही है। टीकेएमएस के साथ बातचीत से भारत में नेक्स्ट जेन की कंवेंशनल सबमरीन प्रोडक्शन की रूपरेखा तय होने की उम्मीद है। रक्षा सूत्रों ने एएनआई को बताया कि सरकार न केवल इन नावों को हासिल करने की इच्छुक है, बल्कि भविष्य की जरूरतों के लिए स्वदेशी डिजाइन और निर्माण विशेषज्ञता भी विकसित करना चाहती है।  इस कॉन्ट्रैक्ट के अगले छह महीने के अंदर पूरा होने की उम्मीद है।

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