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अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी, पेट्रोल-डीजल होगा सस्ता?, ट्रंप की टैरिफ नीति का भी होगा असर

नई दिल्ली
यह बहुत ही कम बार होता है कि एक तरफ मुद्रा बाजार में रुपया डॉलर के मुकाबले मजबूत हो रहा हो और दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी आ रही हो।  रुपया डॉलर के मुकाबले पांच पैसे मजबूत हो कर 85.25 के स्तर पर बंद हुआ। दूसरी तरफ, ब्रेंट क्रूड (क्रूड बाजार का मानक) की कीमतों में पिछले तीन वर्षों की सबसे बड़ी गिरावट भी शुक्रवार को हुई। यह 3.26 फीसद की गिरावट के साथ 67.87 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर आ गया था।

फिर जरूर मिली होती राहत
अगर किसी सामान्य काल में ऐसा होता तो तेल कंपनियों ने आम जनता को पेट्रोल व डीजल की खुदरा कीमतों में कमी करने का तोहफा जरूर दिया होता, लेकिन फिलहाल इसकी उम्मीद कम दिखती है। वित्त मंत्रालय के आला अधिकारियों का कहना है कि ट्रंप प्रशासन की तरफ से पारस्परिक शुल्क लगाने के बाद जिस तरह से वैश्विक माहौल बन रहा है, उसको देखत हुए सतर्क रहने की जरूरत है।

एक साल पहले कम हुई थी कीमतें
भारत में पिछली बार पेट्रोल और डीजल की खुदरा कीमतों में कटौती पिछले आम चुनाव से पहले मार्च, 2024 में दो रुपये प्रति लीटर की हुई थी। पेट्रोलियम मंत्रालय के आंकड़ें स्वयं बताते हैं कि जून, 2024 और सितंबर, 2024 को छोड़ दिया जाए तो भारत ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में मार्च, 2024 के मुकाबले सस्ती दरों पर ही कच्चे तेल की खरीद की है। मार्च, 2024 के माह में भारत के लिए क्रूड खरीद की औसत लागत 82.58 डॉलर प्रति बैरल थी। अप्रैल के पहले तीन दिनों में यह 75.76 डॉलर प्रति बैरल है। केयर एज रेटिंग एजेंसी की एक रिपोर्ट बताती है कि वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में भारत की औसत क्रूड खरीद कीमत 85.21 डॉलर प्रति बैरल, दूसरी तिमाही में 78.80 डॉलर प्रति बैरल, तीसरी तिमाही में 73.83 डॉलर प्रति बैरल रही है।

क्या कम होंगे पेट्रोल-डीजल के भाव?
अगर छह महीने तक इस एजेंसी ने क्रूड की कीमत को 75-80 डॉलर रहने का अनुमान लगाया है। अब कीमतें विशेष शोध एजेंसियों के अनुमान से नीचे आ गई हैं और कुछ अंतरराष्ट्रीय एजंसियों ने इससे भी नीचे जाने की बात कही है। वजह यह बताया जा रहा है कि अमेरिका भी क्रूड उत्पादन बढ़ा रहा है और तेल उत्पादक देशों के संगठन (ओपेक) ने भी उत्पादन बढ़ाने का फैसला किया है। एक तरफ उत्पादन बढ़ने की स्थिति है तो दूसरी तरफ मांग के घटने की संभावना है।

क्यों कम हो रहीं क्रूड की कीमतें?
एसबीआई की रिपोर्ट कहती है कि पारस्परिक कर लगाने का फैसला अमेरिका में महंगाई के स्तर को 2.2 फीसद तक बढ़ा सकता है। वैश्विक निर्यात की वृद्धि दर वर्ष 2024-25 में 2.9 फीसद थी वह वर्ष 2025-26 में घट कर 1.3 फीसद आ सकती है। यह मंदी की तरफ से इशारा करता है। संभवत: क्रूड की कीमतें इस डर से ही कम हो रही हैं। पूर्व में कई बार जब क्रूड महंगा हुआ है तब तेल कंपनियों ने यह कह कर बहाना बनाया है कि डॉलर महंगा हो रहा है। चूंकि आयातित क्रूड का भुगतान तेल कंपनियां डॉलर में करती हैं और जब यह महंगा होता है तो उन्हें खाते से ज्यादा रुपये का भुगतान होता है। अभी ऐसा नहीं है।
फरवरी, 2025 में एक डॉलर की कीमत एक समय 88.10 के स्तर को छू गई थी। लोग इसके जल्द ही 100 के आंकड़ें के पार होने के कयास लगा रहे थे। लेकिन पिछले कुछ कारोबारी दिनों में यह लगातार मजबूत हो रहा है।

 

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