छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ रजत महोत्सव: महिला सम्मेलन एवं तीजा-पोरा महोत्सव का भव्य आयोजन

रायपुर,

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेवता पर राजधानी रायपुर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आज छत्तीसगढ़ का पारंपरिक त्योहार तीजा-पोरा धूमधाम से मनाया गया। ‘विष्णु भइया’ के नेवता पर आयोजित इस भव्य आयोजन में शामिल होने के लिए प्रदेशभर से बड़ी संख्या में महिलाएँ पहुँचीं। प्रदेश सरकार के मंत्रियों और जनप्रतिनिधियों ने माताओं-बहनों का आत्मीय स्वागत किया और उन्हें उपहार स्वरूप साड़ी, श्रृंगार सामग्री और छत्तीसगढ़ी कलेवा भेंट किया गया।

मुख्य अतिथि उपमुख्यमंत्री श्री अरुण साव ने उपस्थित माताओं-बहनों को तीजा पर्व की शुभकामनाएँ दीं। महिला सम्मेलन को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि तीजा छत्तीसगढ़ में नारी शक्ति के मान, सम्मान और दृढ़ निश्चय का महत्वपूर्ण पर्व है। निर्जला व्रत रखकर अपने पति-परिवार की सुरक्षा और समृद्धि की कामना करने वाली सभी माताओं-बहनों को उन्होंने सरकार की ओर से शुभकामनाएँ दीं। श्री साव ने कहा कि मुख्यमंत्री श्री साय के नेवता पर माताओं-बहनों की इतनी बड़ी संख्या में उपस्थिति स्वयं इस पर्व के महत्व को सिद्ध करती है।

उन्होंने कहा कि तीजा के आते ही माताओं-बहनों के मन में प्रसन्नता छा जाती है। भाई-भतीजा के तीजा लिवाने आने की प्रतीक्षा रहती है। मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में प्रदेश सरकार छत्तीसगढ़ महतारी के मान, सम्मान और गौरव को बढ़ाने के लिए निरंतर कार्य कर रही है। महतारी वंदन योजना के अंतर्गत प्रदेश की 70 लाख से अधिक माताओं-बहनों को प्रतिमाह एक हजार रुपए की राशि मिल रही है। इससे वे आर्थिक रूप से सशक्त हो रही हैं और घर-परिवार को संचालित करने में पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने हेतु आगे भी ऐसी योजनाएँ लाती रहेगी।

कृषि मंत्री रामविचार नेताम ने भी तीजा-पोरा पर्व की बधाई दी और कहा कि यह अवसर सभी तीजहारिन बहनों के लिए बहुत विशेष है। यह पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि महिलाओं के लिए खुशी, एकजुटता और आत्मीयता का प्रतीक है।

महिला एवं बाल विकास मंत्री लक्ष्मी राजवाड़े ने कहा कि तीजा धार्मिक, सामाजिक और प्राकृतिक सामंजस्य का पर्व है। माता-बहनें परिवार को जोड़कर स्वर्ग समान बनाए रखने का कार्य करती हैं। सुहागन महिलाएँ निर्जला व्रत रखकर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए शिव-पार्वती की पूजा करती हैं। सावन में खेत-खलिहान हरे-भरे हो जाते हैं, जिनमें गाय-बैलों की अथक मेहनत का योगदान होता है। इसी मेहनत से हमारे धान के कोठार भरते हैं। कार्यक्रम में मौजूद पूर्व सांसद सरोज पांडेय ने भी सम्मेलन को संबोधित किया।

इस अवसर पर पंडवानी गायिका पद्मश्री उषा बारले और लोकगायिका कुमारी आरु साहू को स्मृतिचिह्न भेंट कर सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में श्रम एवं उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन, विधायक सुनील सोनी, इंद्र कुमार साव, अनुज शर्मा, केश शिल्पी बोर्ड की अध्यक्ष मोना सेना, अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष अमरजीत छाबड़ा, खाद्य नागरिक आपूर्ति निगम के अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, रायपुर की महापौर  मीनल चौबे सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित थे।

महिला सम्मेलन में महतारियों का उत्साह, तीजहारिन बहनों ने लगवाई मेंहदी

तीजा-पोरा के नेवता के लिए ‘विष्णु भइया’ का जताया आभार

मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के भाई के रूप में दिए गए नेवता पर पंडित दीनदयाल उपाध्याय ऑडिटोरियम में आयोजित महिला सम्मेलन एवं तीजा-पोरा तिहार में बड़ी संख्या में माताओं-बहनों ने भाग लिया। यहाँ लगाए गए स्टॉल गुलजार रहे। महिलाओं ने मेंहदी लगवाई, रंग-बिरंगी चूड़ियाँ पहनीं, आलता लगाया और सजधज कर सावन के झूले का आनंद लिया।

महतारियों के लिए विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया गया। पंडवानी गायिका उषा बारले ने अपनी प्रस्तुति से सबका मन मोह लिया। पूरे सभागार को छत्तीसगढ़ी पारंपरिक साज-सज्जा से सजाया गया था। यहाँ मेहंदी, चूड़ियाँ, आलता के स्टॉल और ग्रामीण परिवेश को जीवंत करते हुए तीजा-पोरा की तैयारियाँ प्रदर्शित की गईं।

ऑडिटोरियम में छत्तीसगढ़ के पारंपरिक चिन्हारी आभूषणों की प्रदर्शनी भी लगाई गई। इसमें तोड़ा, पैरी पैजन, लच्छा, साँटी, झांझ, बिछिया, बिछुआ, चुटकी, ऐंठी, गोल, कंगन या कड़ा टरकउव्वा, कंगन या कड़ा (चोटी की तरह गुँथा हुआ), पटा, ककनी-हर्रया, तरकी, छुमका, ढार, खिनवा, लुरकी, धतुरिया, फुल्ली, नथ, रुपियामाला, तिलरी, कटवा, सूता, करधन, बजुबंद, खग्गा, फुंदरा और झबली जैसे पारंपरिक आभूषणों के साथ कृषि उपकरण और वाद्ययंत्र भी प्रदर्शित किए गए।

महिलाओं ने खेल प्रतियोगिताओं में दिखाया उत्साह

कुर्सी दौड़, जलेबी दौड़, नींबू दौड़ और रस्साकशी जैसी प्रतियोगिताएँ हुईं

महिला सम्मेलन एवं तीजा-पोरा तिहार की शुरुआत विधि-विधान से शिव-पार्वती और नंदी की पूजा-अर्चना से हुई। इसके बाद मंचीय कार्यक्रमों में महिलाओं की सहभागिता ने पूरे माहौल को उत्सवमय बना दिया।

कुर्सी दौड़, जलेबी दौड़, नींबू दौड़ और रस्साकशी जैसी प्रतियोगिताओं में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। पूरा वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट और उत्साह से गूंज उठा। इन खेलों ने न केवल प्रतियोगिता का रोमांच बढ़ाया, बल्कि पारंपरिक पर्व की आत्मीयता और सामाजिकता को भी जीवंत कर दिया।

कई महिलाओं ने कहा कि ऐसे आयोजनों से त्योहार का आनंद दोगुना हो जाता है और समाज में आपसी मेलजोल भी बढ़ता है। प्रतियोगिता के अंत में विजेताओं को पुरस्कृत किया गया और सभी प्रतिभागियों की सराहना की गई।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button