प्रमोशन के बाद डिमोशन गैरकानूनी: हाई कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला

ग्वालियर
मध्यप्रदेश हाई कोर्ट(MP High Court) ने पुलिस विभाग की दो अलग-अलग कार्रवाइयों को अवैध करार देते हुए अहम फैसले सुनाए हैं। कोर्ट ने एक मामले में प्रमोशन के बाद डिमोशन(Demotion After Promotion) को असंवैधानिक बताया, वहीं दूसरे मामले में पहले से सजा हो चुके कर्मियों के खिलाफ दोबारा विभागीय जांच(second Departmental Inquiry) शुरू करने को नियम विरुद्ध ठहराया है।
मामला 1: प्रमोशन के बाद डिमोशन अवैध
यह केस प्रमोद कुमार दुबे से जुड़ा है, जिन्हें वर्ष 2010 में सहायक उपनिरीक्षक (एमटी) से उपनिरीक्षक (एमटी)के पद पर प्रमोट किया गया था। लेकिन बाद में विभाग ने यह कहकर उनका प्रमोशन रद्द कर दिया कि वर्ष 2007 में उन पर एक वेतनवृद्धि रोकने की सजा लगाई गई थी, जिसका प्रभाव 5 वर्षों तक माना गया।
विभाग का आरोप था कि उन्होंने सेवा पुस्तिका में इस सजा का रिकॉर्ड छिपाया। लेकिन याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि प्रमोशन के लिए केवल पिछले 3 वर्षों में कोई बड़ी सजा नहीं होनी चाहिए, न कि 5 वर्षों की।
कोर्ट ने यह तर्क मानते हुए कहा कि तीन साल की शर्त पूरी होती है, और विभाग का यह दावा कि सजा का प्रभाव 5 साल तक माना जाएगा, कानूनी और नीतिगत रूप से अस्थिर है। अतः कोर्ट ने डिमोशन का आदेश रद्द कर प्रमोशन को वैध घोषित किया।
मामला 2: दोबारा विभागीय जांच अवैध
दूसरे मामले में हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्ति से पहले दो पुलिसकर्मियों के खिलाफ दोबारा विभागीय जांच शुरू करने को अवैध बताया है। यह मामला उपनिरीक्षक मनीराम नादिर और प्रधान आरक्षक ओमवीर सिंह की याचिका से जुड़ा है।
याचिकाकर्ताओं ने बताया कि उनके खिलाफ पहली विभागीय जांच 14 दिसंबर 2020 को पूरी हो चुकी थी, जिसमें मनीराम पर 10 हजार रुपये का जुर्माना और ओमवीर सिंह की एक वेतनवृद्धि 6 महीने के लिए रोकी गई थी।
इसके बावजूद विभाग ने 26 अक्टूबर 2022 को दोबारा जांच का नोटिस जारी किया, जिसे कोर्ट ने अधिकार क्षेत्र से बाहर और अवैध करार दिया। शासन पक्ष इस दोबारा जांच को न्यायोचित ठहराने में असफल रहा। कोर्ट ने साफ कहा कि एक बार सजा देने के बाद, बिना पूर्व आदेश रद्द किए दोबारा जांच करना कानूनन गलत है।