मध्य प्रदेश

हाईकोर्ट का निर्देश रेप की प्रारंभिक चिकित्सकीय जांच में गर्भावस्था परीक्षण अनिवार्य रूप होगा

जबलपुर
 मध्य प्रदेश के जबलपुर हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िताओं की सुरक्षा और उनके अधिकारों को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा है कि जब भी किसी दुष्कर्म पीड़िता की मेडिकल जांच की जाए, तो उसी समय उसका प्रेग्नेंसी (गर्भावस्था) टेस्ट भी अनिवार्य रूप से किया जाए. यह आदेश हाईकोर्ट ने राज्य के डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) को सीधे तौर पर दिया है.

हाईकोर्ट ने डीजीपी से कहा है कि वह प्रदेश के सभी जिलों के एसपी (पुलिस अधीक्षक) को इस बारे में स्पष्ट निर्देश जारी करें, ताकि यह नियम पूरे राज्य में सख्ती से लागू हो सके.

क्यों लिया गया यह फैसला?
हाईकोर्ट ने यह आदेश नाबालिग दुष्कर्म पीड़िताओं के मामलों में गर्भवती होने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए लिया है. कोर्ट ने इस पर चिंता जताई है कि कई बार पीड़िता की प्रेग्नेंसी की पुष्टि करने में देर हो जाती है, क्योंकि टेस्ट समय पर नहीं होता. ऐसे मामलों में जब तक कोर्ट से गर्भपात की अनुमति मिलती है, तब तक गर्भ 20 हफ्ते से अधिक हो जाता है. ऐसे में न तो डॉक्टरों के लिए और न ही पीड़िता के परिवार के लिए कोई फैसला लेना आसान होता है.

गर्भपात को लेकर पहले से जारी है गाइडलाइन
हाईकोर्ट ने पहले भी दुष्कर्म मामलों में पीड़िता के गर्भपात को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन उन पर समय रहते अमल नहीं हो पाता. अब नए आदेश में कोर्ट ने साफ कहा है कि मेडिकल जांच के साथ ही प्रेग्नेंसी टेस्ट किया जाए, ताकि समय रहते पता चल सके और आवश्यक कानूनी प्रक्रिया पूरी की जा सके.

सभी जिलों के एसपी को दिए गए निर्देश

हाईकोर्ट ने मध्यप्रदेश के डीजीपी को आदेश दिया है कि वह राज्य के सभी जिलों के पुलिस अधीक्षकों को इस निर्णय का पालन सुनिश्चित कराने के लिए तत्काल निर्देश जारी करें. यह स्पष्ट किया गया कि दुष्कर्म पीड़िताओं की जांच प्रक्रिया में अब प्रेग्नेंसी टेस्ट को अनिवार्य रूप से शामिल किया जाए. इससे संबंधित विभागों को भी सहयोग के लिए तैयार रहने को कहा गया है. यह फैसला न सिर्फ पीड़िताओं को न्याय दिलाने की दिशा में अहम कदम है बल्कि यह प्रशासनिक तंत्र को भी मजबूत करता है.

अक्सर देखा जाता है कि माता-पिता को गर्भावस्था का देर से पता चलता है और वे जब गर्भपात की अनुमति के लिए आवेदन करते हैं तब तक गर्भ काफी आगे बढ़ चुका होता है. इससे गर्भपात कानूनी और चिकित्सकीय दोनों ही दृष्टियों से कठिन हो जाता है.

सीहोर जिले का मामला बना आधार

ये निर्देश सीहोर जिले की एक घटना के बाद सामने आया, जहां एक नाबालिग रेप पीड़िता की गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो चुकी थी. स्थानीय POCSO अदालत से मामला हाईकोर्ट में पहुंचा, जहां डॉक्टरों की रिपोर्ट में यह चिंता जताई गई कि गर्भ बनाए रखने या हटाने- दोनों ही परिस्थितियां पीड़िता के लिए जानलेवा हो सकती हैं.

पुलिस की जिम्मेदारी तय

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि अब यह पुलिस की जिम्मेदारी होगी कि जब भी बलात्कार की शिकायत मिले, तो पहले मेडिकल जांच में ही प्रेग्नेंसी टेस्ट सुनिश्चित किया जाए, ताकि निर्णय लेने में कोई समय न गंवाया जाए.

पहले भी जारी की थी गाइडलाइन

बता दें कि फरवरी 2025 में भी हाईकोर्ट ने एक दिशा-निर्देश जारी किया था कि अगर नाबालिग पीड़िता 24 सप्ताह से अधिक गर्भवती पाई जाती है, तो गर्भपात के लिए कोर्ट की मंजूरी जरूरी होगी, जैसा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट में प्रावधान है.

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का यह आदेश एक साहसिक और मानवीय दृष्टिकोण से प्रेरित निर्णय है, जो दुष्कर्म पीड़िताओं के जीवन की रक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए एक नया रास्ता खोलता है। इससे जहां न्याय प्रक्रिया तेज होगी वहीं पीड़िताओं के लिए मानसिक और शारीरिक राहत सुनिश्चित हो सकेगी। अब यह प्रदेश पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेदारी है कि इस आदेश को समय पर, प्रभावी ढंग से लागू करें और दुष्कर्म पीड़िताओं को जल्द न्याय और सुरक्षा प्रदान करें।

नाबालिगों के लिए यह कदम और जरूरी
कोर्ट ने खासतौर पर नाबालिग लड़कियों के मामलों में इस दिशा में तत्परता बरतने को कहा है, क्योंकि कम उम्र में गर्भवती होना मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से बेहद तकलीफदेह हो सकता है.

यह आदेश न सिर्फ न्याय प्रक्रिया को तेज करेगा, बल्कि दुष्कर्म पीड़िताओं को राहत देने की दिशा में भी एक अहम कदम साबित हो सकता है. अब देखना होगा कि पुलिस और प्रशासन इस पर कितनी गंभीरता से अमल करता है.

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