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J-10C बनाम राफेल: भारत और फ्रांस ने किया बड़ा रक्षा सौदा, अफवाहों का दिया मुंहतोड़ जवाब

नई दिल्ली 
भारत और फ्रांस के बीच राफेल फाइटर जेट को लेकर चल रहे कथित विवाद पर चीन और पाकिस्तान ने एक नया नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की है। मगर अब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर की फ्रांस यात्रा इस गलत प्रचार की हवा निकालने का काम करेगी। अगले हफ्ते पेरिस में होने वाली यह यात्रा सिर्फ एक कूटनीतिक मुलाकात नहीं, बल्कि भारत की सैन्य प्रतिष्ठा और वैश्विक रणनीतिक साझेदारी को मज़बूत करने की दिशा में अहम कदम होगी।

फ्रांस सांसद के सवालों से विवाद की शुरुआत
फ्रांस के सांसद मार्क चावेंट ने अपने विदेश मंत्री से पूछा कि क्या भारत का राफेल फाइटर जेट हालिया झड़पों में पाकिस्तान के J-10C द्वारा गिराया गया था। उन्होंने PL-15E मिसाइल और KLJ-10A AESA रडार का उल्लेख करते हुए पूछा कि अगर ये सच है तो इससे फ्रांस की एयरोस्पेस तकनीक और रणनीतिक नेतृत्व पर सवाल उठ सकते हैं। उन्होंने राफेल के स्पेक्ट्रा इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम की कार्यक्षमता पर भी सवाल उठाए।

पाकिस्तान-चीन का प्रोपेगेंडा युद्ध
चीन और पाकिस्तान की मीडिया ने दावा किया कि भारत और फ्रांस के बीच राफेल को लेकर विवाद हो गया है। उनके अनुसार फ्रांसीसी निरीक्षण टीम को भारत आने से रोक दिया गया। साथ ही प्रचारित किया गया कि पाकिस्तान के J-10C फाइटर ने राफेल को गिराया। भारत सरकार ने अब तक इस दावे की कोई पुष्टि नहीं की है। लेकिन चीन और पाकिस्तान का ये प्रोपेगेंडा सिर्फ भारत और फ्रांस की रणनीतिक साझेदारी को तोड़ने की कोशिश नहीं है, बल्कि राफेल की छवि को धूमिल कर दक्षिण-पूर्व एशिया और मिडिल ईस्ट जैसे हथियार बाजारों में चीनी J-10 को प्रमोट करने का प्रयास है।

राफेल-टाटा की नई डील 
इन तमाम अफवाहों के बीच भारत की टाटा एडवांस्ड सिस्टम्स लिमिटेड और फ्रांस की दसॉल्ट एविएशन ने एक नई डील पर हस्ताक्षर किए हैं। इसके तहत हैदराबाद में एक अत्याधुनिक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाया जाएगा जहाँ राफेल के मुख्य ढांचे का निर्माण होगा। यह साझेदारी भारतीय मल्टी रोल फाइटर एयरक्राफ्ट (MRFA) प्रोग्राम का हिस्सा है, जिसकी लागत $25 बिलियन से अधिक आंकी जा रही है। इसमें राफेल, F-21, F/A-18, ग्रिपेन-ई और SU-35 जैसे विकल्पों की प्रतिस्पर्धा है।

फ्रांस की प्रतिक्रिया: सच्चाई की तलाश
फ्रांस के रक्षा मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि वे भी राफेल को लेकर फैलाई जा रही बातों की सच्चाई जानने में रुचि रखते हैं। प्रवक्ता ने कहा कि अगर वास्तव में राफेल युद्ध में गिरा है, तो यह पहला मौका होगा और इसकी पुष्टि आवश्यक है। फ्रांस ने भारत के साथ मिलकर तथ्यों की जांच करने की बात कही है।

राफेल  को निशाना क्यों बना रहा चीन?
चीन का मकसद स्पष्ट है साउथ ईस्ट एशिया में J-10 जैसे अपने विमान बेचने के लिए राफेल को कमजोर दिखाना। मलेशिया ने हाल ही में 42 राफेल खरीदने की डील की है और इंडोनेशिया ने $8 अरब की डील साइन की है। ऐसे में चीन नहीं चाहता कि फ्रांस इन क्षेत्रों में अपनी पकड़ मज़बूत करे।

भारत और फ्रांस की साझेदारी अटूट
राफेल को लेकर जो भी अफवाहें फैलाई जा रही हैं, उनका कोई ठोस आधार नहीं है। भारत और फ्रांस की साझेदारी पहले से अधिक मजबूत हो रही है। जयशंकर की यात्रा इस साझेदारी को और प्रगाढ़ करेगी और साथ ही चीन-पाकिस्तान के झूठे प्रचार को बेनकाब करेगी। भारत की सैन्य प्रतिष्ठा को लेकर कोई संदेह की गुंजाइश नहीं है, और यह दौरा इस विश्वास को वैश्विक मंच पर और भी सुदृढ़ करेगा।

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